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17 साल से नहीं मिली ग्रांट, अब सुप्रीम कोर्ट से आस

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विपिन कुमार चौधरी

शिक्षा तब व्यवसाय नहीं थी, बात उस दौर की है। बिन सरकारी मदद दानवीरों ने मोंटेसरी से विश्वविद्यालय तक तमाम शिक्षण संस्थान स्थापित किये। बिल्डिंग और छात्र संख्या उनमें आज भी सराहनीय हैं। वही मोंटेसरी स्कूल आज हमारा फोकस हैं। यूपी में ऐसे 45 मोंटेसरी स्कूल थे। जिनके खर्चों में 50 फीसदी तक का सहायता अनुदान सरकार देती थी। शर्त थी कि बच्चों से मिली फीस सरकार को जाएगी। गरीब बच्चों को इनका लाभ मिला, फीस बहुत सामान्य थी। 45 में कुछ स्कूल ऐसे भी थे जो मनमाफिक फीस लेते थे, उन्हें फीस में सरकार का दखल बर्दाश्त नहीं था और ग्रांट का सिम्बल भी चाहिए था। ऐसा हुआ भी, पता नहीं कैसे? उस समय सरकारी ग्रांट रसूख का सिम्बल थी। सरकारी सिम्बल से चतुर संस्थाओं ने खूब नाम कमाया और मौका देखकर वही स्कूल आज सीबीएसई में भी बदल दिए। हालांकि बिना सक्षम एनओसी के ऐसा करना अपराध है। जाहिर है सीबीएसई में परिवर्तित स्कूल बच्चों को फीस में अब वो राहत नहीं देते। दुर्गति तो उन संस्थाओं की है जो व्यवसायीकरण की तरफ भी नहीं गईं और सरकारों ने भी साथ छोड़ दिया। इन स्कूलों के पास आज भी इतनी बिल्डिंग और छात्र संख्या है कि सरकार के 5 प्राथमिक स्कूल मिलकर भी उतने नहीं हैं। आप हैरान होंगे कि वर्तमान में 45 में से सिर्फ 2 मोंटेसरी स्कूलों को ही सरकारी अनुदान मिल रहा है, राजश्री रामपाल वैदिक मोंटेसरी स्कूल रायबरेली और बाल विहार मोंटेसरी स्कूल हरदोई। बाकी स्कूल (सीबीएसई में परिवर्तित को छोड़कर) शिक्षकों के पूरे वेतन की मांग की सजा झेल रहे हैं? जबकि वेतन वितरण अधिनियम 1971 पूरे वेतन के लिए ही लाया गया था। इन स्कूलों की बदहाली पिछली सरकारों में शुरू हुई थी, जो भाजपा सरकार में भी कायम है। नजीर के तौर पर पेश है 67 वर्ष पुराने एक मोंटेसरी स्कूल का हाल।

अवमानना में राहत लेकर यूपी सरकार कर रही उच्च न्यायालय के आदेशों की अनदेखी, बचाव भर का पत्राचार कर विभाग भी साधे बैठा है चुप्पी

सरकार से अनुदानित अलीगढ का इकलौता अशासकीय मोंटेसरी स्कूल बचा है श्री महेश्वर मांटेसरी बाल मंदिर। 1956 में तोताराम विद्यार्थी ने स्थापना की थी, 11 अगस्त 1962 को स्थायी मान्यता मिली। फिर शिक्षा संहिता 1958 की धारा 308 के तहत सरकार ग्रांट देने लगी। ग्रांट 2005 तक मिली। उसके बाद ग्रांट के पत्र मिले लेकिन 17 साल से ग्रांट नहीं मिली है। इसी खींचतान से बचने के लिए रामघाट रोड स्थित दूसरी स्कूली संस्था ने खुद को सीबीएसई में परिवर्तित कर लिया है। इसे मिलाकर 2 विद्यालय थे, जो सरकार से ग्रांटेड थे।

5000 था पहला अनुदान
23 फरवरी 1963 में पहला अनुदान 5 हजार रुपये मिला था, ये सत्र 1962-63 के लिए था। जो सत्र 2004-05 तक बढ़कर 4 लाख 60 हजार 998 रुपये हो गया था। इसके बाद सरकार ने इस विद्यालय को कोई अनुदान नहीं दिया। जबकि छात्र संख्या में यह आज भी जिले के अच्छे विद्यालयों में एक है। सत्र 2022-23 में 421 बच्चे पंजीकृत थे, 403 ने परीक्षा भी दी। पहले के सत्रों में संख्या 747 तक भी रही है। दो मंजिला विद्यालय परिसर में 28 कमरे, 13 शौचालय, 1 प्रधानाचार्य कक्ष, 1 कार्यालय कक्ष और 37×76 फ़ीट का खेल मैदान भी है।

निदेशक ने ही की थी पहल
1 अक्टूबर 1986 को तत्कालीन बेसिक शिक्षा निदेशक ने अलीगढ सहित 28 बेसिक शिक्षा अधिकारियों को आदेश (पत्रांक: अर्थ-4/4597-685/दस-पी) जारी कर ऐसे विद्यालयों के आय-व्यय का ब्यौरा मांगा था। कहा था कि अध्यापकों की भर्ती एवं सेवा शर्त नियमावली 1975 के नियम 10 के तहत कम से कम वो वेतन भत्ते देना जरूरी है जो बेसिक शिक्षा परिषद में देय हैं। इसी से शिक्षकों को भी सभी भत्तों के साथ पूरे वेतन की आस जागी थी। लेकिन इस आदेश पर अमल नहीं हुआ।

हाईकोर्ट के आदेश भी बेअसर
निदेशक के आदेश पर गौर नहीं हुआ तो श्री महेश्वर मोंटेसरी बाल मंदिर की शिक्षिकाएं सुशीला श्रीवास्तव, कुसुम अग्रवाल, ऊषा कुलश्रेष्ठ, निर्मला रानी, सरोज मिश्रा, हिरेश गुप्ता एवं उर्मिला गौड़ ने 1988 में उच्च न्यायालय में याचिका 17846 दायर की, जिसमें 27 नवम्बर 1991 को शिक्षिकाओं के पक्ष में आदेश हुआ। आदेश के विरुद्ध 1992 में यूपी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका 15789 दायर की जो 14 जनवरी 1993 को खारिज हो गयी। सरकार ने रिव्यू याचिका 1245 दायर की, ये भी 20 जुलाई 1993 को खारिज हो गयी। इसके बावजूद भी प्रदेश सरकार ने अध्यापकों की भर्ती एवं सेवा शर्त नियमावली के नियम 10 के तहत भुगतान नहीं किये।

हाईकोर्ट ने फिर दिए आदेश
शिक्षिकाओं ने फिर उच्च न्यायालय की शरण ली। इस बार विद्यालय प्रबंधक ने भी 1997 में याचिका 12826 दायर की। जिसमें उच्च न्यायालय ने 16 नवम्बर 1998 को नियमावली 1975 के नियम 10 के तहत ही वेतन भुगतान के आदेश पारित किए। इसके विरुद्ध शासन ने 1999 में फिर स्पेशल अपील 434 दायर की, हालांकि 24 नवम्बर 2009 को न्यायालय ने सरकार की अपील खारिज कर अपने आदेश को कायम रखा।

अवमानना में राहत लेकर साधा मौन
हाईकोर्ट के 2009 के आदेश पर 5 फरवरी 2010 को शिक्षा निदेशक ने बीएसए को विद्यालय का आकस्मिक निरीक्षण के आदेश देते हुए स्टाफ, बच्चे व विद्यालय सम्बन्धी बिंदुवार विवरण मांगा था। बीएसए ने 20 फरवरी 2010 को डिटेल आख्या भी निदेशालय को भेजी। लेकिन उच्च न्यायालय के आदेशों अनुसार वेतन भुगतान फिर भी नहीं हुआ। हारकर शिक्षिकाओं ने 2010 में सरकार के विरुद्ध अवमानना याचिका 3583 दायर की। इसमें 30 जुलाई 2010 में शासन को नोटिस हो गए। इतना होने के बाद शिक्षा निदेशक ने 19 अक्टूबर 2010 को बीएसए अलीगढ को न्यायालय के आदेश के अनुपालन में वेतन भुगतान के आदेश पारित किए और कहा कि यदि धनराशि कम पड़े तो निदेशालय से मांग ली जाये। 23 अक्टूबर 2010 को बीएसए ने विद्यालय से स्टाफ का विवरण मांगा। स्कूल प्रबंधन पहले 14 अक्टूबर 2010 को ही 1 करोड़ 28 लाख 54 हजार 531 रुपये बकाया अनुदान की डिमांड बीएसए को भेज चुका था। लेकिन शासन ने भुगतान करने की बजाय 24 नवम्बर 2009 के उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध 2010 में फिर से सर्वोच्च न्यायालय में स्पेशल अपील 15281 दायर की। 8 नवम्बर 2010 में शासन उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना में राहत पाने में सफल रहा। तभी से इस मामले में शासन उच्च न्यायालय के आदेशों से बेफिक्र है। उधर विभाग भी मौन साधे बैठा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ अवमानना में यूपी सरकार को राहत दी है, हाईकोर्ट के पूरा वेतन देने के आदेश पर कोई रोक नहीं लगाई थी।

87 साल की हो गईं सुशीला, बाकी मृत
उच्च न्यायालय के 2009 के आदेश व सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचने तक 5 में से हीरेश गुप्ता व निर्मला रानी की मृत्यु हो चुकी थी। वहीं सुशीला श्रीवास्तव 30 जून 1997, ऊषा कुलश्रेष्ठ 30 जून 2001 व उर्मिला गौड़ 30 जून 2003 में सेवानिवृत हो चुके थे और अब तक ऊषा कुलश्रेष्ठ व उर्मिला गौड़ की भी मृत्यु हो गयी है। सुशीला जीवित हैं, वह करीब 87 वर्ष की हो चली हैं। बात को ज्यादा सुन नहीं पाती हैं। इनके बेटे अजय सिन्हा के मुताबिक “13 वर्षों से मैं खुद पैरवी कर रहा हूँ, 2010 में डीओ ऑफिस (निदेशक कार्यालय) भी गया था। वहां कोई राय साहब बाबू थे, उन्होंने कहा कि डीओ ऑफिस के बाबू बिना कमीशन कुछ नहीं करेंगे। एक साल का वेतन मांग रहे हैं। आपके स्कूल बाबू पन्नालाल ने कमीशन देने से मना कर दिया है इसलिए डीओ ऑफिस के बाबू सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं।” उधर, विद्यालय के बाकी शिक्षक भी सेवानिवृत या छोड़कर जा चुके हैं।

शिक्षकों उनका हक मिलना चाहिए। बाकी पूरे देश में शिक्षा के मॉडल पर चर्चा हो रही हैं। जब सरकार को विद्यालयों का इतना मजबूत ढांचा तैयार मिल रहा है जहां भरपूर कक्षाएं और सभी सुविधाएं हैं, फिर भी सरकार उदासीन है तो ये चिंता का विषय है।
रवि राठी, प्रबंधक
श्री महेश्वर मोंटेसरी बाल मंदिर, अलीगढ।

कितने साल पहले के आदेश की बात कर रहे हैं, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का ऐसा कोई मामला कभी मेरे सामने नहीं आया है। मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
अवधेश तिवारी, विशेष सचिव बेसिक शिक्षा (उप्र)
(उच्च न्यायालय मामलों के सरकार स्तर के नोडल अधिकारी)

“मामला तो संज्ञान में हैं, लेकिन पटल सहायक के घर में शादी है, अभी छुट्टी पर हैं। फाइल उन्हीं के पास है। छुट्टी से लौटने पर दिखवायेंगे।”
राजेन्द्र प्रसाद, उपनिदेशक बेसिक शिक्षा (उप्र)
(उच्च न्यायालय मामलों के निदेशालय स्तर पर नोडल अधिकारी)

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