गृह मंत्री मणिपुर में, फिर भी नहीं थमी हिंसा, कारण क्या हैं?
“हिंसा में मारे गए लोगों को 10-10 लाख की आर्थिक मदद व सरकारी नोकरी दी जाएगी:
अमित शाह
”“28 मई को
सीएम बिरेन सिंह
ने कहा नागरिकों को निशाना बनाने वाले 40 कुकी मिलिटेंट मारे गए हैं। इससे पहले एक बयान में उन्होंने इन्हें आतंकवादी बताया।”“मणिपुर की स्थिति का उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है और मुख्य रूप से दो जातियों के बीच संघर्ष है। यह कानून और व्यवस्था की तरह की स्थिति है और हम राज्य सरकार की मदद कर रहे हैं। हमने बेहतरीन काम किया है और बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई है। मणिपुर में चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं और इसमें कुछ समय लगेगा लेकिन उम्मीद है कि वे शांत हो जाएंगी:
अनिल चौहान, सीडीएस जनरल
”“सरकार को राजधर्म का पालन करना चाहिए, निष्पक्ष होकर दोनों तरफ के हिंसावादियों पर कार्यवाही करनी होगी और दोनों पक्षों को बिठाकर उनके इश्यू पर बात करनी होगी:
अंशुमन चौधरी
“
मणिपुर में नस्लीय हिंसा 3 मई से अब तक जारी है। हिंसावादी हजारों की संख्या में सुरक्षा बलों के हथियार छीन रहे हैं? हिंसा में अब तक 75 लोग मारे जा चुके हैं। मुख्यमंत्री हालात पर काबू पाने में नाकाम हैं। राज्य आपातकाल जैसे गम्भीर हालातों में है। गृह मंत्री 29 मई से 1 जून तक मणिपुर दौरे पर हैं। उन्होंने वहां हिंसा में मारे गए लोगों को 10-10 लाख की आर्थिक मदद व सरकारी नोकरी देने का एलान किया है। लेकिन हिंसा नहीं थमा रही। इस कदर हिंसा के क्या कारण हैं? सवाल और भी हैं। जानिए, इन सवालों पर नीति अनुसंधान केंद्र से जुड़े राजनैतिक व रक्षा मामलों के विशेषज्ञ अंशुमन चौधरी के जवाब।
सवाल: अंशुमन जी, अभी सही में हो क्या रहा है मणिपुर में?
जवाब: ये सामान्य मामला नहीं है, इसकी कई परतें हैं। मूल विषय यह है कि ये मैतई और कुकी के बीच एक अंतरजातीय विवाद है। जो कई साल से जमा हो रहा था। अभी जाकर ये आपसी हिंसा में बदल चुका है। इतने बड़े स्तर पर हिंसा ऐसे ही नहीं होती है, उसे समय लगता है। यदि बिरेन सिंह सरकार थोड़ा केयरफुली इस बात को समझती कि दोनों तरफ के इश्यू के समाधान ढूंढे जाएं, दोनों पक्षों को बिठाकर बात करवाई जाए और वो अगर ये पिछले 1-2 सालों या 3-4 सालों में करवाते तो शायद आज हमें ये हिंसा देखने को नहीं मिलती। इसमें 2-3 मूल विषय हैं। एक, बिरेन सिंह सरकार एक तरफ वाइज दिख रही है, इससे कुकी समुदाय को ये लगता है कि उनके साथ अन्याय हो रहा है। बिरेन सिंह सरकार इंफाल की घाटी के मैतई समाज से प्रभावित है, उन्हें सालों से राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक फायदे मिल रहे हैं। पहाड़ों पर रहने आले कुकी, नगा समाज तक ये फायदे नहीं पहुंच पाए हैं। कुकी समाज में सालों से ये एक फीलिंग है, जो आज उभर आयी है। अप्रैल में मणिपुर उच्च न्यायालय का मैतई को आदिवासी दर्जा सम्बन्धी आदेश इमीडिएत ट्रिगर है। उस फैसले को कुकी नहीं मान पाये, बहुत ज्यादा आघात मिला। उनको लगा कि मैतई को आदिवासी दर्जा मिलने से उनकी संविधानिक सुरक्षा प्रभावित हो जाएगी।
सवाल: अगर ये नस्लीय हिंसा है तो एक तरफ के लोगों को आतंकवादी क्यों कहा जा रहा है? मीडिया में 40 कुकी आतंकवादियों को मार गिराने वाली सुर्खियां हैं। इन्हें हम क्या कहेंगे?
जवाब: इस तरह की हिंसा में ये नेचुरल है कि दोनों तरफ कुछ सशस्त्र यूनिट होंगे। अभी 28 मई को सीएम बिरेन सिंह खुद ही बयान दिए कि मणिपुर कमांडो ने कार्यवाई की और 40 आतंकवादी मार दिए। लेकिन कुकी समुदाय के नेताओं ने आगे आकर बयान दिए कि मारे जाने वाले आतंकवादी नहीं थे। वो मैतई के हमले से गांव को डिफेंड करने वाले कुकी वालंटियर थे। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य सरकार का जो बयान है कि हमने कुकी आतंकी समूहों पर कार्यवाही की। तो समाज के सबसे बड़े आर्म ग्रुप कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन के लीडर ने बयान दिया कि हम या हमारे सीज फायर ग्रुप इसमें शामिल थे ही नहीं। उस हिसाब से हम देख रहे हैं कि बिरेन सिंह सरकार जो कह रही है वो ग्राउंड रिएलिटी से मैच नहीं करता।
सवाल: मुख्यमंत्री के एक तरफ झुकाव की खबरें हैं। 30 मई के इंडियन एक्सप्रेस में दीप्तिमान तिवारी अपनी लीड स्टोरी में रिसोर्सेज को कोड करते हुए कह रहे हैं कि प्रशासन भी नस्लीय आधार पर बंट गया है। और जिन हत्यारों द्वारा हथियार छीनने की बात कही जा रही है, वो छीने नहीं, उन्हें सौंपे जा रहे हैं? हैंडओवर शब्द का इस्तेमाल किया गया है। अगर प्रशासन खुद को मैतई या कुकी रूप में देखेगा, ऐसे में तो बहुत असम्भव हो जाएगा इसे कंट्रोल करना?
जवाब: इस तरह के वायलेंस को रोकने के लिए सरकार को राजधर्म का पालन करना चाहिए। निष्पक्ष होकर कार्यवाही करनी चाहिए। लेकिन जो रिपोर्ट्स हमें देखने को मिल रही हैं, वो काफी दुखद और डिस्टरबिंग हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस तरह के साइकिल ऑफ वायलेंस को रोकना है तो सरकार दोनों तरफ के हिंसावादियों को रोके। लेकिन अगर एक तरफ के हिंसावादी को रोकेंगे तो साइकिल ऑफ वायलेंस बढ़ता जाएगा। ये काफी चिंताजनक बात है। अगर राज्य की पुलिस नस्ल में बंट गयी है तो केंद्र सरकार का दायित्व है कि वो आकर इसे कंट्रोल करे। लेकिन अभी तक हमें वो देखने को नहीं मिला है।
सवाल: मैतई व कुकी अपने असर वाले इलाकों में वापस लौट रहे हैं। मिक्स लोकेलिटी में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे। खाली घरों को जलाया जा रहा है, लूटपाट की जा रही है। इतने गम्भीर हालात हैं। केंद्रीय गृह मंत्री 29 मई को वहां पहुंचे हैं?
जवाब: ये अच्छी बात है कि गृह मंत्री वहां गए हैं। लेकिन उनको काफी पहले जाना चाहिए था। मई के पहले हफ्ते से ये वायलेंस चल रहा है। शायद वो पहले जाते और दोनों पक्षों को एकसाथ लाकर बातचीत करवाते। मेन इश्यू जैसे, सरकार आरक्षित वनों का एक्सक्यूज लेकर कुकी समुदाय को डिस्प्लेस कर रही थी और सारी जो पेंडिंग इश्यू हैं उन्हें डिसकस करते तो एक डेढ़ हफ्ते से वायलेंस का ये नया एपिसोड शायद नहीं होता। मुझे नहीं लगता कि केंद्र सरकार ने समय पर एक्शन लिया। अगर लिया होता तो शायद ये नहीं देखते हम आज।
सवाल: बिरेन सिंह के 40 आतंकवादी ठिकाने लगाने वाले बयान के बाद मेन स्ट्रीम नरेटिव नजर आ रहा है कि सरकार बहुत मजबूत तरीके से मुकाबला कर रही है और अब गृह मंत्री भी पहुंच चुके हैं, तो सबकुछ ठीक हो जाएगा। हम जानना चाहते हैं कि जिन खबरों को हम देख रहे हैं कि दोनों पक्षों को बुलाकर बात होगी, आगे अब आप किस तरह की संभावना देखते हैं?
जवाब: देखिए, देरी होने से ये मुश्किल आ जाती है कि हिंसा के कारण दोनों पक्षों में आपसी संदेह काफी बढ़ चुका है। मुझे लगता है अभी बातचीत होना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन गृह मंत्री को ये कोशिश बिल्कुल करनी चाहिए, शायद इन मामलों का कोई हल निकल आये। मेरी चिंता ये है कि हिंसा लोगों के बीच तक काफी पॉप्युलर लेवल पर पहुंच गई है। जिसे रोकना अभी मुश्किल हो सकता है। दूसरी बात ये है कि राज्य सरकार कह रही है कि हमने आतंकवादियों को ठिकाने लगा दिया, ये इंटरेस्टिंग है कि 30 मई को चीफ ऑफ डिफेंस जनरल अनिल चौहान ने बयान दिया कि मणिपुर में आतंकवादियों वाली स्थिति नहीं है। ये दो समुदायों के बीच की लड़ाई है। सेना मणिपुर में सभी ऑपरेशन में शामिल है। ये देखने को मिल रहा है कि राज्य सरकार और सेना के बीच पोजीशन में अंतर हैं, कोर्डिनेशन नहीं दिख रहा। ये बहुत बड़ा इश्यू है यहां पर। दोनों के बीच बातचीत जरूरी है। मैं आशा ये करता हूँ कि गृह मंत्री इन पेंडिंग इश्यू को भी डिजॉल्व करेंगे।
सवाल: वहां प्रशासन ने कर्फ्यू की घोषणा की हुई है। लेकिन लोग उसे भी नहीं मान रहे हैं? सरकार और आदिवासियों के बीच का समझौता इस उपद्रव के दौरान भी माना जा रहा है या हिंसा के बीच खत्म हो चुका है?
जवाब: कुछ कुकी ऑर्गनाइजेशन जैसे, कुकी नेशनल आर्मी, जोमी रेवोल्यूशन आर्मी और सरकार के बीच एक सीज फायर था। बिरेन सिंह सरकार ने उस समझौते को हिंसा से पहले मार्च में ही सस्पेंड कर दिया था। यह कहकर कि ये ग्रुप अफीम उगा रहे हैं और पूरी सिचुएशन को रीस्टेबलाइज कर रहे हैं। दूसरी बात, मैंने कहा कि पहले ही दिन से ऐसा लग रहा कि बिरेन सिंह सरकार का एक तरफ झुकाव है। इसी को देखकर कुकी समाज का विश्वास बिरेन सिंह सरकार से उठ चुका है। अगर विश्वास ही नहीं रहा तो वो समझौता कैसे रहेगा। ये काफी चिंताजनक बात है। मैं आशा करता हूँ कि गृह मंत्री की मौजूदगी से ये समझौता फिर से बने। लेकिन मुझे मुश्किल लग रहा है।
केंद्र सरकार शुरू से हमारी मदद कर रही है ताकि राज्य में माहौल सामान्य हो सके। अभी हमारे गृह मंत्री अमित शाह जी आए हैं और जल्द ही हम इस समस्या का समाधान निकालेंगे। इस समय हमारी प्राथमिकता मणिपुर में शांति बहाल करना है। इसके लिए हमारी सरकार हरसंभव कोशिश कर रही है। यहाँ शांति स्थापित करना ही हमारा मुख्य लक्ष्य है।
शारदा देवी, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, मणिपुर