काइरोप्रैक्टिक: डॉ शेरवानी के हाथों में है “जादू”, 5 लाख पार हुए फॉलोवर
अलीगढ, उत्तर प्रदेश।
शरीर में स्वयं को स्वस्थ रखने की एक शक्तिशाली और आश्चर्यजनक क्षमता होती है। रीढ़ की हड्डी और उसकी कार्यप्रणाली का इससे गहरा संबंध है, जिसका असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। रीढ़ की हड्डी का संरेखण कितना महत्वपूर्ण रहा है, यूनानी दार्शनिक हिप्पोक्रेट्स की उस टिप्पणी से समझा जा सकता है कि “बीमारी की उत्पत्ति के लिए रीढ़ की हड्डी को अच्छी तरह देखें।” ओंटारियो में जन्मे डॉ डीडी पामर ने 1895 में चौकीदार को बहरेपन की शिकायत होने पर यही किया था। उसी दिन दुनिया में काइरोप्रैक्टिक का जन्म हुआ। अब यह उपचार की वैकल्पिक पध्दति भर नहीं है, बल्कि मुख्य पध्दति बनती जा रही है। 2006 के बाद से भारत में भी यह खूब फलफूल रही है। अलीगढ के डॉ शेरवानी को देख लीजिए। उन्होंने 21 दिसम्बर 2016 से प्रैक्टिस की अपनी वीडियो यूट्यूब पर साझा करनी शुरू की थीं, आज 3.6 लाख लोग उनके “जादुई इलाज” के मुरीद हैं (देखें: https://youtube.com/@drsherwani634)। फॉलोवर संख्या फेसबुक पर 5 लाख पार कर गयी है (देखें: https://www.facebook.com/profile.php?id=100076259503043&mibextid=ZbWKwL)। डॉ शेरवानी के बेटे डॉ एम. आसिफ ने बताया कि क्वार्सी बाईपास स्थित उपचार केंद्र पर 99 फीसदी कमर, गर्दन और सर्वाइकल के पीड़ित आते हैं। जिनमें 70 फीसदी पीड़ित महिलाएं हैं। लकवा, घुटनों के दर्द आदि सामान्य मामलों में इतनी वीडियो बना दी हैं कि सामान्य पीड़ितों को घर बैठे उपचार मिल रहा है।
क्या है काइरोप्रैक्टिक
यह एक ग्रीक शब्द है, जिसका अर्थ है “हाथ से किया गया”। अर्थ से ही स्पष्ट है कि यह मैनुअल तकनीक है। जिसमें बिना दवा और सर्जरी के खासतौर से रीढ़ की हड्डियों में आये अंतर को सेट किया जाता है। थेरेपी रीढ़ और शरीर के कार्य के बीच सम्बंध पर केंद्रित है। इसका उपयोग मुख्य रूप से मांसपेशियों, हड्डियों, जोड़ों, उपास्थि, टेंडन और लिगामेंट्स जैसे संयोजी ऊतकों से सम्बंधित समस्याओं के इलाज में होता है। उन्हें हाथों से सेट करते हैं। दो-तीन बार में ही मरीज को आराम मिलने लगता है। इस थेरेपी में फिजियो का महत्व जरूर है, लेकिन ये फिजियो से भिन्न है। फिजियो में डॉक्टर की सलाह से व्यायाम करवाया जाता है। जबकि उक्त थेरेपी को बिना दवा, सर्जरी व जांच के इलाज का अधिकार है, यानी पूर्णतः कुदरती देखभाल का एक तरीका है। काइरोप्रैक्टिक देखभाल के जरिये पीड़ा और पेचीदेपन से बचा जा सकता है। कुछ शोध यह भी कहते हैं कि यह स्तन कैंसर का इलाज करा चुकी महिलाओं में रजोनिवृति के लक्षण सिरदर्द, पीठ, जोड़ों के दर्द आदि से राहत दे सकती है। वहीं, शोध यह भी बताते हैं कि यह थेरेपी वृद्ध व वयस्कों में रीढ़ सम्बंधी सेवाओं का चिकित्सा खर्च कम कर सकती है।
भारत में डॉ एजे नंदा की देन
भारतीय मूल के कनाडियन डॉ एजे नंदा भारत में काइरोप्रैक्टिक के संस्थापक हैं। 2001 में कैलिफोर्निया स्थित लाइफ काइरोप्रैक्टिक कालेज वेस्ट में स्नातक करते वक्त उन्होंने भारत में इसकी कमी महसूस की थी। 22 मार्च 2006 में इंडियन एसोसिएशन ऑफ काइरोप्रैक्टिक डॉक्टर्स (आईएसीडी) की आधिकारिक घोषणा उन्हीं के प्रयासों से हुई। हालांकि काइरोप्रैक्टिक नाम 1895 में डॉ डीडी पामर ने दिया। दुनिया में इसका खोजकर्ता डॉ पामर को ही माना जाता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि दुनिया में इससे पहले ये थेरेपी नहीं थी। वास्तव में तो यह प्राचीनकाल से ही अस्तित्व में है। पहले इसे “बोर्न सेटिंग” नाम से जाना जाता था। भारत, चीन, ग्रीस, रोम आदि देशों में “बोर्न सेटर्स” का दस्तावेजीकरण करके ही काइरोप्रैक्टिक को बढ़ावा दिया गया है।