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जांच से परहेज क्यों?

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• सीबीआई ने 5 वर्ष में उत्तर प्रदेश व दिल्ली सहित महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक और तमिलनाडू के 166 अफसरों को किया नामजद, ज्यादातर नामजदगी भ्रष्टाचार में हुई हैं, राज्य सरकारें अफसरों पर जांच की स्वीकृति देने में कथित रूप से कर रहीं देरी, कई नोटिस लंबित •

राज्य सरकारें नामजद अफसरों पर सीबीआई जांच की स्वीकृत क्यों नहीं दे रही हैं? सीबीआई ने सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ जो मामले दर्ज किए हैं, उनमें से ज्यादातर मामले भ्र्ष्टाचार से जुड़े हैं। आखिर जांच से परहेज क्यों?
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 2018 से अब तक कुल 166 सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ मामले दर्द किये हैं। केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में सांसद सुगाता रे के सवालों का जवाब देते हुए संसद को ये जानकारी दी। सबसे ज्यादा मामले सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ महाराष्ट्र में दर्ज किए गए हैं, यहां 35 अधिकारियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई है। दूसरे नम्बर पर जम्मू कश्मीर आता है यहां कुल 18 सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई हैं। वहीं कर्नाटक 14, उत्तर प्रदेश के 13 तमिलनाडू के 10 और दिल्ली के 9 अधिकारियों के खिलाफ मामले दर्ज किये गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 17 मार्च 2023 तक ये आंकड़े अलग-अलग विभाग व मंत्रालयों द्वारा जारी की गई जानकारी के आधार पर सामने रखे गए हैं। संसद में बोलते हुए राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने यह भी बताया कि ग्रुप ए और बी के कुल 88 सिविल सेवा अधिकारियों ने समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 के तहत यह नियम है कि अगर कोई भी सरकारी अधिकारी अपनी ड्यूटी के दौरान कोई भी कथित आपराधिक कृत्य करता है तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए एक सक्षम अधिकारी की पूर्व स्वीकृति लेनी होगी। इस मामले में एक सीबीआई अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ जो मामले दर्ज किए गए हैं उनमें से ज्यादातर मामले भ्र्ष्टाचार से जुड़े हैं। राज्य सरकारों के पास इन मामलों की जांच के लिए कई नोटिस अभी भी लंबित हैं। अधिकारी ने आगे बताया कि राज्य सरकारें इन मामलों में जांच की स्वीकृति देने में कथित रूप से देरी करती हैं। उनके मुताबिक इस बात को कार्मिक विभाग की स्थायी समिति ने मार्च 2022 की एक रिपोर्ट में भी सामने रखा था। सीबीआई अधिकारी ने कहा कि अखिल भारतीय सेवा आचरण नियमावली 1968 और केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली 1964 के तहत अधिकारियों के आपराधिक कृत्यों की जांच की जाती है।

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