प्रभावितों को आर्थिक मदद, सुरक्षा, चिकित्सा और न्याय मिलेगा, हथियार सरेंडर करें : गृह मंत्री
अपर्णा मिश्रा
मैं बिना किसी झिझक के कह सकता हूँ कि मणिपुर हाईकोर्ट के एक जल्दबाजी के फैसले के कारण यहां जातीय व दो गुटों में हिंसा की शुरुआत हुई। बीते 6 वर्षों से, जबसे मणिपुर में भाजपा की सरकार आयी, मणिपुर बंद, ब्लॉकेज, कर्फ्यू और हिंसा से मुक्त हो गया था। मणिपुर में अभी ढेर सारी एजेंसियां सुरक्षा की दृष्टि से काम कर रही हैं। उनके बीच बेहतर समन्वय के लिए एडवाइजर कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में इंटर एजेंसी यूनिफाइड कमांड की व्यवस्था आज से ही हम रचना में लाएंगे। जो सभी एजेंसियों के मीटर कोर्डिनेशन व पक्षपात विहीन काम करेंगे।
अमित शाह, गृह मंत्री
हिंसा व पलायन रोकने के लिए अमित शाह ने किये दोनों समुदायों के बीच राज्य के प्रति विश्वास बहाली के प्रयास
देर से ही सही लेकिन देश के गृह मंत्री 29 मई से 1 जून तक 4 दिन मणिपुर में पड़ाव डाले रहे, वहां के हालातों को इसी से समझा जा सकता है। इस दौरे में उन्होंने राज्य व केंद्र सरकार के अधिकारियों व नेताओं के साथ बैठक कीं। कुकी, मैतई और नगा समुदाय के साथ भी मैराथन बैठकें कीं। शाह ने इंफाल सहित हिंसा प्रभावित चुराचंदपुर, मोरेह और कांगपोकपी का दौरा भी किया। 22 मैतई समुदाय के संगठनों और अलग-अलग बाहरी जिलों में 25 कुकी समुदाय के संगठनों से भी उनकी मुलाकात हुईं। शाह ने हिंसा व पलायन रोकने के लिए दोनों समुदायों के बीच राज्य के प्रति विश्वास बहाली के प्रयास किये। यही वजह रही कि उन्होंने दोनों समुदायों की प्रमुख हस्तियों, खिलाड़ियों, बुद्धजीवियों, 11 पार्टी के नेताओं, सिविल सोसायटी के लोगों, रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों, महिला और युवा संगठनों के लोगों से मुलाकात की। इसके अलावा राहत शिविरों, अस्पतालों का दौरा भी किया और हिंसा प्रभावित लोगों को जल्द से जल्द शांति बहाली का भरोसा दिया। 1 जून को मणिपुर से लौटने से पहले प्रेस कांफ्रेंस कर जरूरी एलान भी किये।
अमित शाह के एलान
1) मणिपुर हिंसा के 6 मामलों की जांच सीबीआई करेगी। 2 जून से सर्च ऑपरेशन भी शुरू होगा। उन्होंने कहा कि मैं मणिपुर के लोगों को विश्वास दिलाता हूँ कि बिना भेदभाव और पक्षपात के जांच होगी। दोषियों को सजा मिलेगी।
2) भारत सरकार की ओर से एक रिटायर जज की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग का गठन किया जाएगा। ये हिंसा के सभी पहलुओं और कारणों की जांच करेगा।
3) राज्यपाल की अध्यक्षता में शांति समिति का गठन किया जाएगा। इसमें सभी पक्षों के लोग, राजनीतिक दल के नेता और खिलाड़ी शामिल होंगे।
4) जिन्होंने हिंसा में जान गंवाई उनके परिजनों को 10-10 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी। 5 लाख रुपये केंद्र और 5 लाख मणिपुर सरकार देगी। पीड़ितों को ये राशि डीबीटी के जरिये सीधे भेजी जाएगी।
5) राहत और पुनर्वास पैकेज भी तैयार किया गया है। जिनकी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचा है उन्हें भी आर्थिक मुआवजा दिया जाएगा।
6) हिंसा के चलते मेडिकल सुविधाओं की दिक्कतों को दूर करने के लिए भारत सरकार ने 20 चिकित्सकों की 8 टीम बनाई हैं। जरूरत पड़ने पर और टीमें असम से भेजी जाएंगी।
7) अमित शाह ने अपील की जिन लोगों के पास हथियार हैं, वो सरेंडर कर दें। जो सरेंडर नहीं करेंगे तो उनपर बड़ी कार्यवाही की जाएगी।
8) सेवानिवृत आईपीएस व सीआरपीएफ के पूर्व डीजी कुलदीप सिंह बेहतर समन्वय के लिए अंतर एजेंसी एकीकृत कमान का नेतृत्व करेंगे। ये उन अधिकारियों में से एक हैं, जिन्हें राज्य में हिंसा की शुरुआत के तत्काल बाद मणिपुर भेजा गया था।
जमीनी हकीकत
इंफाल की घाटी से सटे फुट हिल्स इलाके उखरुल और सेनापति, जहां नगा समुदाय बहुतायत में है, को छोड़कर मणिपुर के अधिकांश इलाकों से हिंसा की खबरें आ रही हैं। इंफाल ईस्ट इलाके में केआर लेन है। अमित शाह के मणिपुर में रहते हुए केआर लेन में कुकी समुदाय के एक घर में आग लगा दी गयी। मौके पर कर्फ्यू है और लोगों ने दुकान या घरों पर समाज के नाम का मार्केशन कर रखा है। जिस पर मार्केशन नहीं है, मान लिया जा रहा है कि कुकी का है। उसमें आग लगा दी जा रही है। यही चुराचंदपुर में हो रहा है। कुकी के घरों पर ट्राइबल लिखा है और कुकी का नहीं है उसमें आग लगा दे रहे हैं। मैतई और कुकी दोनों के बीच खूनी खेल हो रहा है, एक दूसरे की लाशें गिरा रहे हैं। ध्यान रहे कि दोनों समुदाय हिंसा का पुराना इतिहास रखते हैं। दोनों इतने हिंसक हो चुके हैं कि सवाल तो अब ये है कि क्या वे दोनों एक दूसरे के साथ रह पाएंगे? इसलिए शाह के प्रयास कितना असर करेंगे, ये कहना अभी मुश्किल है।
अलग प्रशासन चाहते हैं कुकी
गृह मंत्री ने सभी पक्षों से बात तो की हैं। लेकिन कुकी समुदाय कह रहा है कि वे मणिपुर राज्य से पूरी तरह अलग प्रशासन चाहते हैं। उनका कहना है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह के प्रशासन और मणिपुरी सोसायटी जिनमें अधिकतर मैतई हैं, में वे सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। कुकी कहते हैं लड़ाई उस पहाड़ी जमीन की है, जो आदिवासी भूमि है। यदि मैतई को आदिवासी दर्जा मिल गया तो उनका जमीनी हक खतरे में आ जायेगा।